जिननाथपुरम तीर्थ (खुणादरी इतिहास)

देवाधिदेव श्री भगवान 1008 श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र जिननाथपुरम तीर्थ परिचय (खुणादरी इतिहास)
जम्बू द्वीप, भरत क्षेत्रे, आर्य खण्डे संस्कृति शिरोमणि राजस्थाने, सौन्दर्यता, दर्शनियता का संगम उदयपुर जिले के भोमट क्षेत्रे, खडक खैरवाड़ा के पहाड़ियों में घिरा, पहाड़ियों के दर्रा में बसा होने से खुणादरी नाम से प्रसिद्ध है। खुणादरी का पौराणिक नाम क्रोणाद्री था। वही अति प्राचीन चमत्कारी अतिशय क्षेत्र खुणादरी (क्रोणाद्री) देवाधिदेव श्री 1008 श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर है।
जैन धर्म के प्रवर्त्तक भगवान ऋषभदेव थे। जिन्होंने कई शताब्दियों पूर्व जन्म धारण किया था। इस प्रकार के पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध है। जिनके आधार पर सिद्ध होता है कि ईसा से एक शताब्दी पूर्व भी ऐसे लोग थे जो ऋषभदेव की पूजा करते थे, जो प्रधान तीर्थंकर थे। जैन धर्म शाश्वत धर्म है और सृष्टि के आरम्भ से ही विद्यमान रहा है। जैन धर्म काल गणना के अनुसार तीर्थंकर ऋषभदेव के अस्तित्व का संकेत संख्यातीत वर्षों पूर्व मिलता है। पुरातत्त्ववेताओं ने ऋषभदेव का समय ताम्र युग के अन्त और कृषि युग के प्रारम्भ लगभग 6000 छः हजार वर्ष ईसा पूर्व मानते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार ऋषभदेव का समय लगभग 27000 ईसा पूर्व का है। प्राचीन मूर्तियाँ और उनके अवशेष जैन धर्म की प्राचीनता के जीवंत प्रमाण हैं।
खुणादरी दिगम्बर जैन आदिनाथ अतिशय क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 8 खैरवाड़ा में क्रोस करता एन. एच. 927ए (डुंगरपुर- खैरवाड़ा से सिरोही मार्ग नं. 927ए पर खैरवाड़ा से सोम फलासिया रूट पर खुणादरी ग्राम स्थित है। खैरवाड़ा से 17 किमी. सोम फलासिया रूट पर आने के बाद उत्तर दिशा में एक किसी अन्दर अतिशय क्षेत्र खुणादरी ग्राम स्थित है। समीपस्थ सात किमी बावलवाड़ा ग्राम की दिगम्बर जैन समाज की देख-रेख व व्यवस्था से इस अतिशय क्षेत्र की व्यवस्था होती है।
मूलनायक के दायीं ओर सफेद पाषाण (प्रस्तर) की प्रतिमा श्री आदिनाथ भगवान की ऊँचाई एक फीट आसान पौन फीट का है। संवत 1401 की है। मूलनायक के बांयी ओर काली पाणाष की प्रतिमा श्री पार्श्वनाथ भगवान की ऊँचाई सात इंच पदमासन पाँच इंच का है।
मूलनायक के सिंहासन के दोनों तरफ आमने-सामने दो पाषाण की काली जिनेन्द्र भगवान की मूर्तियाँ हैं। चिह्न स्पष्ट नजर नहीं आ रहे हैं? खण्डित मूर्ति सफेद पाषाण की चन्द्रप्रभु (चाँद) ऊँचाई डेढ फुट चौड़ाई पदमासन एक फुट का है, प्रतिष्ठा संवत् 1401 की है व काली पाषाण मूर्ति सम्भवनाथ (घोड़ा) ऊर्चा डेढ फुट चौड़ाई पदमासन एक फुट का है। ये मूर्ति 1480 की है। विद्वानों मतानुसार मूर्तिया खण्डव नहीं है। पाषाण को खुर्द-बुर्ध खरोची ही है। खुणादरी मन्दिर में प्रस्तर (पाषाण) की कुल छः ही प्रतिमायें हैं। जिसमें चार मूलनायक के दोनों तरफ हैं और दो खण्डित प्रतिमायें दोनों तरफ आले में विराजमान हैं। कुल छः प्रतिमायें पाषाण की मूलनायक अष्ट धातु की है। जिनालय में कुल सात प्रतिमायें हैं।
खुणादरी जिनालय के बाहर आले में क्षेत्रपाल की प्रतिमा भी है। खुणादरी जिनालय दक्षिण-दक्षिण पूर्व यानि पूर्व से दक्षिण तरफ 30 डिग्री का कोण बना स्थित है।
पूर्व से दक्षिण तरफ 30 डिग्री का कोण पर श्रीजी का मुख्य द्वार भी है। मन्दिर के बाहर चबुतरा, चबुतरे के बांये कोने की कुटिया में क्षेत्र की रक्षा के लिये रक्षपाल की बड़ी प्रतिमा विराजमान है जो दिगम्बर जैन समाज द्वारा स्थापित है। मन्दिर क्षेत्र के पीछे से लेकर चारों तरफ कोटा बना हुआ है। मन्दिर के पीछे रमणीय बड़ा पहाड़, आगे पहाड़ व मकान दायीं ओर नाले को बांध एनीकेट बनाया। मन्दिर के सामने परकोटे से लगा चौमासे में नाला बहता है। मन्दिर से सटी बांयी ओर धर्मसाला है। मन्दिर के परकोटे में बांयी ओर आवाजाही का मुख्य दरवाजा बड़ा है। मन्दिर के सामने नया जिनालय, संत भवन व भोजनशाला का निर्माण हो गया है। खुणादरी मन्दिर ग्राम के तीनों तरफ नदी परिक्रमा करती है व एक भाग से आवाजाही का मार्ग देती है। ऐसे गाँव की भूमि व मन्दिर पूजनीय व अतिशयकारी ही होगी।
जिननाथपुरम तीर्थ (खुणादरी )अतिशय क्षेत्र की अनेक चमत्कारी दन्त कथायें हैं जो भगवान की श्रद्धा-भक्ति, पूजा-पाठ को प्रेरित करती है।
1. एक समय में मूलनायक आदिनाथ भगवान की मूर्ति खुणादरी से चोर चोरी कर थाना गाँव तालाब पर ले गये। चोरों ने मूर्ति को सोने की जान तोड़नी चाही पर जैसे ही मूर्ति पर औजार के वार पडे, दूध की धारा बह निकली। इस चमत्कार से भयभीत हो चोरों ने मूर्ति को बड़ा तालाब थाना में डाल दी। (मूर्ति पर आज भी निशान मौजूद है, देख सकते हैं) तत्पश्चात् भगवान ने पुजारी वजाराम को स्वप्न दिया। मैं बड़ा तालाब थाना में हूँ। मुझे यहाँ से निकाल कर विराजमान करो।
पुजारी वजाराम ने खुणादरी नगरी में यह समाचार आग की तरह फैला दिया। हर आबाल-वृद्ध-नारी के जुबान पद एक बात भगवान तालाब में है। उन्हें लाने हैं, लाने की तैयारियाँ शुरू हुई। बाजे-गाजे, नाचते-गाते भक्ति में लोग चले। तालाब पर पहुँचे। भगवान को निकाल पूजा-अर्चना कर भगवान को बैलगाड़ी में रखने लगे पर भगवान अपने स्थान से हीले नहीं। जब वजाराम पुजारी ने देखा तो सोचकर उसने ही भगवान को उसे अपने सिर पर रखा तो भगवान का वजन फुल सा हल्का हो गया। नाचते-गाते भक्ति से लाकर भगवान श्री आदिनाथ मूलनायक को पुनः प्रतिष्ठा कर प्रतिष्ठित किया।
2.इसी नगरी के राजपुत्र युद्ध में गुम (लापता हो गया। राजा ने भगवान श्री के द्वार पर मनोत की कि जब तक मेरा पुत्र घर नहीं आता मैं घी (घृत) नहीं खाऊँगा। कुछ समय पश्चात् भगवान ने स्वप्न में दर्शन दिये। स्वप्न में बताये अनुसार ठीक एक साल बाद राजपुत्र घर लौटा।राजा की श्रद्धा व आस्था बढ़ी। लोग आज भी श्रद्धा से दर्शन करते हैं।
3.कुछ वर्षों पहले की बात है कि कालूलाल जैन (भाणदा वाले) की देख- रेख में भगवान के पीछे की चुनायी करा रहे थे तो भगवान के पीछे से केशरी भुजंग (नाग) प्रकट हो गया और फन फैलाकर मना कर दिया। कालूलाल जी ने भगवान का आशय जान माफी माँग काम बन्द कर दिया। जीर्णोद्धार के समय शिखर पर कारीगर को मरम्मत के समय खोटी- गलत हास्यादि पर शिखर से दुत्कार फेंका। उसने कभी खोटी, गलत, हास्यादि नहीं करने का प्रण ले श्रीजी के सामने नतमस्तक हो गया।
4.एक पुलिस मेन के पूर्व में सभी बच्चियाँ ही थी। उसने भी खुणादरी बाबा को श्रद्धा से विनय की प्राप्ति के पूर्ण माह चल रहे थे तो उसके भी बिना कष्ट व सादगी से डिलेवरी हो गयी व पुत्र रत्न पाया।
रजस्वला औरत कभी भी इनके चबूतरे पर नहीं जाती। जैन ही नहीं अपितु अजैन भी इनके चमत्कार से डरते हैं। अनेक दम्पत्तियों ने भी आदिप्रभु की मनोत ले पुत्र रत्न पाये हैं।
मूर्ति की खासियत यह भी है कि इसके पास जलती मोमबत्ती रखो तो यह गरम नहीं होती बल्कि इसके ऊपर मोश्चराइज जम जाता है
पुत्र प्राप्ति मन्त्र - ॐ ह्रां पुत्र सुख प्राप्ताय श्री खुणादरी आदि जिनेन्द्राय नमः (आदि प्रभु के सामने 5 पाँच माला जपें और प्रत्येक सोमवार को प्रभु को पाँच बादाम चढ़ावें।)
लक्ष्मीदायक मन्त्र - ॐ ह्रीं नाना लक्ष्मी विभूति विराजमानाय श्री खुणादरी आदिश्वराय नमः (मन्त्र को 11 दिन में 21 हजार जाप्य प्रभु के सम्मुख विधिवत करें।)
सर्व सिद्धीदायक मन्त्र - ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अर्हं श्री खुणादरी आदि तीर्थंकराय नमः (प्रतिदिन 108 बार जाप्य विधिवत करें। )